भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वेदना बनी, मेरी अवनी। / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वेदना बनी;
मेरी अवनी।

कठिन-कठिन हुए मृदुल
पद-कमल विपद संकल
भूमि हुई शयन-तुमुल
कण्टकों घनी।

तुमने जो गही बांह,
वारिद की हुई छांह,
नारी से हुईं नाह,
सुकृत जीवनी।

पार करो यह सागर
दीन के लिए दुस्तर,
करुणामयि, गहकर कर,
ज्योतिर्धमनी।