भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वेदना / छाया त्रिपाठी ओझा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वेदना तुम पास आकर
इस हृदय का बल बनो

अश्रु अंतस में हैं ठहरे
दे रहे हैं घाव गहरे
जिन्दगी के हर कदम पर
ज्यों लगे दिन रात पहरे
वेदना तुम आज आकर
चक्षुओं का जल बनो
वेदना तुम पास आकर
इस हृदय का बल बनो

रूठ बैठे स्वप्न सारे
हम हुए हैं बेसहारे
क्या बचा अब शेष कुछ भी
जब कोई अपनों से हारे
वेदना तुम डगमगाती
आस का सम्बल बनो
वेदना तुम पास आकर
इस हृदय का बल बनो

टूटती हर कामना जब
बस तुम्हें ही थामना तब
फिर उजालों से भला मन
सामना कैसे करे अब
वेदना तुम मुस्कुराकर
हर व्यथा का हल बनो
वेदना तुम पास आकर
इस हृदय का बल बनो