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वे ही तय करते हैं / श्रीधर करुणानिधि

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अब वे ही तय करते हैं हमारी खातिर
हमारे न चाहते हुए भी
तय करते हैं कि
कितनी हो हमारी टाँगों के हिस्से धरती
बाहों को आकाश
और आँखों को बादल

तय करते हैं वे कि
हमारी फ़सलों को कितनी चाहिए नमी
बीज, खाद
और सूरज

वे ही तो तय करते हैं
हवाओं का रुख़

अब तो फलों के पकने का
मौसम भी तय करते हैं वे
तय करते हैं कि
कितना खिलना है फूलों को
मासूम दिखने की खातिर