भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो दूर सफ़र पे जब भी जाएँगे सखी / जाँ निसार अख़्तर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो दूर सफ़र पे जब भी जाएँगे सखी
साड़ी कोई कीमती सी ले आएँगे

चाहूँगी उसे सैंत के रख लूँ लेकिन
पहनूँ न उसी दिन तो बिगड़ जाएँगे