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वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए / 'उनवान' चिश्ती

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वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
जीन की आरज़ू में कई बार मर गए

वो मुस्कुराए होंटों पे जलवे बिखर गए
इक नक़्श-ए-आरज़ू में ई रंग भर गए

गहवारा-ए-निशात-ए-मोहब्बत कहें जिन्हें
ए ज़िंदगी बता वो ज़माने किधर गए

हर जुम्बिश-ए-निगाह है इक मौज़-ए-बेकराँ
क्या कहिये लोग डूब गए यार उभर गए

कुछ इस अदा से मैं ने किया उस का तजि़्करा
कितने ही ख़ुश-जमानों के चेहरे उतर गए