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शतरंज खेलो और प्रेम करो / राजकुमार कुंभज

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एक मिनिट में आता हूँ
कहते हुए जाऊंगा और फिर कभी नहीं आऊंगा
ज़माना देखता रहेगा हरे पत्तों का हिलना
हरे पत्ते हिलेंगे, हिलते रहेंगे, हम फिर-फिर मिलेंगे कहते हुए
ऎसा ही कुछ कहते हुए जाऊंगा मैं भी और फिर कभी नहीं मिलूंगा
पुकारेगा पीछे से कोई प्रियतम की तरह
और मैं अनसुनी करते हुए चला जाऊंगा
देख लेना एक दिन यही करूंगा मैं
कि एक मिनिट में आता हूँ
कहते हुए जाऊंगा और फिर कभी नहीं आऊंगा
फिर-फिर कहूंगा तो कहूंगा यही-यही सबके लिए
कि शतरंज खेलो और प्रेम करो।