भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शत-शत नमन हमारा / जनार्दन राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भारत के नभ में चमके तुम बन प्यारा धु्रव तारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा।

जीरादेई की मिट्टी ने विरषा एक पनपाया,
‘होनहार बिरवा ने सदृश चिकने पत्ते को पाया।
साधारण सा गाँव बन गया तीर्थराज सम प्यारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा।

बचपन से ही बन कर्मठ श्रम का सम्मान किये तुम,
कैसी भी हो कठिन परीक्षा सदा प्रथम आये तुम।
माता, पिता, गुरु अग्रज को आदर मिला तुम्हारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

संगठनात्मक शक्ति तुम्हारी अतुलनीय थी न्यारी,
छात्र-संगठन की बिहार में पनपायी थी क्यारी।
विकसे छात्र-सुमन कितने पाकर आशीष तुम्हारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

हिन्दू मुस्लिम जब-जब आपस में थे टकरा जाते,
नासमझी से एक दूसरों के थे खून बहाते।
दिये मंत्र भाई बननेका दोनों का बन प्यारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

सभी धर्म पावें आदर ऐसा तुमने सिखलाया,
धर्म नहीं कहता लड़ने ऐसा सबको बतलाया।
देश अनेक धर्म का है यह तुमने ही स्वीकारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

गो-सेवा को अर्थार्जन का साधन तुम बतलाये,
हिन्दू, जैन, सिखेत्तर को भी सेवाहित समझाये।
सभी हुए अभिप्रेरित तुमसे सबको मिला सहारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

हिन्दी माता के मन्दिर को तुमने खूब सजाया,
हिन्दुस्तानी के प्रचार का मार्ग प्रशस्त बनाया।
राष्ट्रभाषा परिषद को तो तुमने खूब संवारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

पराधीनता की बेड़ी में जकड़ी भारत माता,
देख पहन ली बेड़ी कर में जोड़ा उससे नाता।
भागी दूर गुलामी जाने से ही तेरा कारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

गांधी का था गुरु मिला, नेहरू सा था सहयोगी,
कर्मक्षेत्र में कूद पड़े बन राष्ट्रपति हे योगी।
प्रजातंत्र फिर पनप उठा पाकर अभिसिंचन न्यारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

आत्म त्याग, अतुलित प्रतिभा से शासन को चमकाया,
सरल स्वभाव मधुर भाषण से अमिट प्रभाव जगाया।
रहे अजातशत्रु निश्छल, निर्मल बन सबका प्यारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

धरती का सच्चा बेटा था सत्य सदा प्रिय तुमको,
और अहिंसा रही बनी आजीवन ही प्रिय तुमको।
कलियुग के विदेह तुमको है पूज रहा जग सारा,
देश-रत्न राजेन्द्र तुम्हें है शत-शत नमन हमारा

-समर्धा,
30.5.1984 ई.