भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शनै:-शनै: प्रबोध हो / अनुराधा पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शनै:-शनै: प्रबोध हो, अचूक वक़्त दे दवा, असह्य दंश ख़त्म हो, धीर वंद्य धार ले।
खड़ा-खड़ा विचारता, विछोह डंक क्यों मिला, अगम्य भेद है सखे! है अजान सार ले।
अद्वैत साध साधिके! , अभेद भेद जान ले, सहेज ज्ञान दिव्य है, तथ्य तो विचार ले।
अमंद नित्य बाँट दे, अमर्त्य पुष्प है नहीं, सुगंध ही अमर्त्य है, जिन्दगी सँवार ले।