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शुक्र मनाओ / मुकेश प्रत्यूष

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शुक्र मनाओ परवरदिगार
मसीहा तुम भी
और यदि अब तक बढ़ी न हो आबादी
तो तैंतीस करोड़ देवी देवता लोग तुम भी

शुक्र मनाओं की तुम हो और सुरक्षित हो

शुक्र मनाओ कि हो गई शाम और तुम ले रहे हो आरती-भोग का आनंद
सब शुभ का संकेत करती बजी हैं घंटियां तुम्हारे घर

शुक्र मनाओ कि तुम अब भी दे लेते हो दर्शन
कर दिए जाओगे कब परदे की ओट में
रोक दिया जाएगा कब आने से किसी को तुम तक
बता नहीं सकता यह तो कोई नजूमी भी

शुक्र मनाओ कि अब भी टेर लेते हैं लोग तुम्हे
तुम भी कर बना देते हो किसी किसी का काम
सब का तो संभव भी नहीं

शुक्र मनाओ कि अब तक पीटी नहीं गई है मुनादी
कि जिसे भी लेना हो तुम्हारा नाम
पहले ले अनुमति, चुकाए कर
कम लाभ का ध्ंाधा थोड़े ही है खोलना तुम्हारे नाम की दुकान

शुक्र मनाओ कि तुम्हारे पास भी है जर-जमीन
भक्तों को छोड़ डाली नहीं है किसी और ने निगाह
फूटे हैं जो दो चार बम तुम्हारे पवित्र घर-आंगन में
वह तो है गुरु - भाइयोंे का खेल

शुक्र मनाओ कि नहीं लगाने पड़ रहे हैं तुम्हे थाने - कचहरी के चक्कर
वरना ताकते रहते तुम भी सूने आकाश में
और बेवशी में मलते रहते हाथ

शुक्र मनाओ -
चाहते हुए भी खुद को जब्त कर रखा है
अबतक
राजा ने

नंगा दिख कर भी दिखना नहीं चाहता है राजा नंगा
रह-रह कर बार-बार ठोक रहा है कपार
राज-पाट के आनंद में बाधक बन रहा है कपड़ा
कफन है बेदाग सफेदी राजा के लिए