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शैय्या शेष की त्याग / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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अहो........... !
अहो देव......... ! हे हरि, विशेष
ओ... चक्रपाणी... तू जाग-जाग
यहाँ डूब रही मानवता छल-जल
अब शैय्या-शेष की त्याग-त्याग।

अब कब तक तू..... यूँ मौन रहेगा?
संकटग्रस्त मनुज, चहुँ लगी आग,
क्यूँ क्षीरसागर सोया तू अब तक?
अब योग-निद्रा से..... जाग....... जाग...!

अब शैय्या शेष की त्याग त्याग...
विध्वंस मचा... मानव, बना दानव
हुआ अंबर तक गुंजित... द्वेष-राग।
अब अवतरित हो... नरसिंह रूप
तू भी करवट ले शेषनाग।
अब योग निद्रा से... जाग... जाग!

तू..... चक्रधारी...... तू ....... वासुदेव
हे, श्यामवर्ण....... गोकुल चिराग,
कर अट्टास...... ले विराट रूप
हों भस्म असुर...... सभी क्रोध आग!
अब शैय्या शेष की....... त्याग त्याग... !

हुए चीर हरण नित... द्रौपद पुत्री
दुःशासन के, फिर... बढ़े हाथ
अब कण-कण में... कौरव बसते
चल पांचजन्य का अब कर तू नाद।
अब शैय्या शेष की... त्याग, त्याग...।

जो छल से वीहर वन में जानकी
छली गई... लंकेश हाथ
अब दसकंधर हर कदम खड़ा
कर भय लक्ष्मण रेखा के व्याप्त
अब शैय्या शेष की, त्याग... त्याग!

हिरणाक्ष्य नहीं अब... एक धरा पर
किये खंडित जिसका मध्य-भाग
अधिकृत हुई, अब दानव से धरती
हो अवतरित ज्योर्तिमय महाभाग
अब शैय्या-शेष की, त्याग... त्याग...!