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श्रीलाल बहादुर शास्त्री / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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प्राणों का फूल गिरा भू पर।
जीवन लतिका से छूट गया॥
सबसे उज्ज्वल था आभा में।
नक्षत्र गगन का टूट गया॥
होता हमको विश्वास नहीं।
तुम नहीं रहे तुम रहे नहीं॥
पिंजरा सुना ही पड़ा हुआ।
तुम प्यारे शुक नहीं रहे॥
यह देश स्वर्ग था भूतल पर।
मिट्टी थी मस्तक का चंदन॥
थी मातृभूमि प्यारी तुमको।
उसका नित करते थे वंदन॥
अगणित वीरों ने बालि दे दी।
जब युद्ध-कुद्ध ललकार उठा।
वीरत्व भरी वाणी सुनकर।
वीरों का रक्त पुकार उठा॥
वीणा के टूटे तार सभी।
झंकार गगन में गूंज रही॥
हा! कहाँ बहादुर है मेरा।
भारत माँ सबसे पुछ रही॥
शांति-दूत वह कहाँ गया।
वह सबका प्यारा कहाँ गया।
जिसकी वाणी हूँकार भरी।
वह सच्चा सैनिक कहाँ गया॥
है मेरा प्यारा लाल कहाँ?
बस एक बार बतला दो॥
वह कहाँ गया कब लौटेगा?
बस इतना मुझको बतला दो॥
कोसिगिन की आंखों ने तो।
आंसू की झड़ी लगाई थी।
लेकिन अयुब की आंखे भी।
पीड़ा से नम हो आयी थी॥
अपने युग के तुम महापुरुष।
जग की वाणी यह बोल उठी॥
इतिहास बनाया है तुमने।
इतिहास बनाया बोल उठी॥
तुम गये और हम खड़े खड़े।
आँसू की धार बहाते हैं॥
हे वीर अमर गाथा तेरी।
हम मन ही मन दुहराते हैं॥
यह यात्रा अंतिम यात्रा है।
सहसा होता विश्वास नहीं॥
वह ज्योति विलीन हुई भू से।
ऐसा होता विश्वास नहीं॥