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संत विनोबा पुण्य यज्ञ भूदान कराने आये हैं / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल

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संत विनोबा पुण्य यज्ञ भूदान कराने आये हैं
गाँव-गाँव में अमर प्रेम की अलख जगाने आये हैं।
ग्राम निवासी भाई-भाई धन वाले और दीन किसान
दोनों धरती पर ही जीते मरते दोनों एक समान
भूख-प्यास दोनों को लगती सबका एक वही भगवान
किन्तु एक है मौज उड़ाता एक सदा होता बलिदान
दो भाई के बीच भेद की भीति ढहाने आये हैं।
बेजमीन मजदूरों को हम भूमि दिलाने आये हैं।
गाँव-गाँव में अमर प्रेम की अलख जगाने आये हैं।

ऐ अमीर तुमको तो प्रभु ने लक्ष्मी का वरदान दिया
किन्तु आज तक तुमने क्या कुछ भी प्रतिदान किया
अरे तुम्हारे ही पड़ोस में भूखा नित प्रभु सोता है
और दरिद्रों की काया में राम हमारा रोता है
आग भरे प्रभु के आँसू से सबक सिखाने आये हैं
हिंसा की खूनी ज्वाला से इंसान बचाने आये हैं।
गाँव-गाँव में अमर प्रेम की अलख जगाने आये हैं।

है अनीति यह धरती पर जो एक बिना श्रम, राज करे
और परिश्रम करके दूजा रोटी को मुहताज फिरे
दो जमीन अब उसको भाई जो भू पर जान निसार रहा
हवा धूप और पानी पर कब किसका है अधिकार रहा?
जियो और जीने दो सबको, यह समझाने आये हैं
जन-मन के घने कुहासे में हम सूर्य उगाने आये हैं
गाँव-गाँव में अमर प्रेम की अलग जगाने आये हैं।

चेत उठो अब नया जमाना आ करके दम लेगा भाई
नहीं चलेगी अब आगे से शोषण की ये मौज कमाई
आज प्रेम से माँग रहे हैं भू-संपति तु दे डालो
धरती का बेटा जागा है उसे प्रेम से गले लगा लो
आज अहिंसक इंकलाब का शंख बजाने आये हैं।
नयी व्यवस्था का देखो निर्माण कराने आये हैं।
गाँव-गाँव मे अमर प्रेम की अलख जगाने आये हैं।