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संध्या / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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संध्या का छुटपूट हो रहा
पेड़ लग रहे काले
तुलसी के चौरा पर माँ ने
दो-दो दीप बाले
पंछी लौटे चुप हो बैठे
बोली अब न सुनाते
चारा नहीं खिलाते शिशु को
अब न मधुर कुछ गाते
पेड़ों के नीचे मत बैठो
नींद आ रही इनको
नये स्वरों में गाने गाकर
सुबह जगाना इनको।