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सच / अनीता कपूर

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सच लिखूँ तो
कविता झूठी हो जाती हैं
झूठ लिखूँ
रिश्ता बेमानी हो जाता है
कशमकश तो है
फिर भी दिल ने यही चाहा है
कि तुम हमेशा
मेरी कविता में जीवित रहो