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सतगुरु के परताप ताप तन री गई / संत जूड़ीराम

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सतगुरु के परताप ताप तन री गई।
छूटी जम की त्रास कलपना मिट गई।
तजो सभी विभिचार देख निज धाम है।
जाप थाप कछु नांह अजर निज नाम है।
उठी सुहंगम नार शेष गृह को चली।
प्रिय मुदित आनंद जाय पिय को मिली।
देखो धाम अखंड प्रेम उर आईयो।
ज्ञान आरती साज तो मंगल गाईयो।
जूड़ीराम चित चेत समुझ मन में रहौ।
सतगुरु चरनन माँय तो तिसना पर हरौ।