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सत्ता हो प्रकाश की / राजा अवस्थी

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उजियारे की संतानों के
घर भी अँधियारे आते हैं,
उजियारे के लिये
जलाने और बचाने पड़ते दीपक।

सरक-सरककर तिमिर सपोले
दशों दिशायें नाप रहे हैं;
कुम्भकार को प्यास मारती
कुछ ऐसे अभिशाप रहे हैं;

सत्ता हो प्रकाश की
ऐसे स्वप्न जिन्हें प्रायः आते हैं,
उन्हें स्वयं जलना होता है
और स्वयं वे गढ़ते दीपक।

अंधकार के पन्नों पर जब
ज्ञान कलम लेकर लिखता है;
साधारण व्यक्तित्व निखरकर
वाल्मीकि ऋषि बन दिखता है;

सूरज तो सूरज है आखिर
सब कुछ भासित कर देता है,
लेकिन रसातलों से लेकर
आसमान तक चढ़ते दीपक।