भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सत्यानंद के दोहे / सत्यानन्द

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

के जानै कखनी कहाँ कौनें साधेॅ वैर
फूकी-फूकी राखियोॅ ‘सत्या’ आपनोॅ पैर ।

सुख सपना दुख सामनें, किंछा लेॅ अरदास
‘सत्या’ हमरोॅ जिंदगी आठो पहर उदास ।

शास्त्रा बिना विद्वान की, अनुभव बिन की ज्ञान
बिन परान के देह रं, तलवारोॅ बिन म्यान ।

‘सत्या’ है संसार छै, हुनके सें आबाद
परमारथ में जे करेॅ अपनां केॅ बरबाद ।

सब्भै लेॅ सुख मांगवै, अपनां लेॅ सेनूर
बाबा बड्डी दूर छै, जैवे मतर जरूर ।

खरखाही के फेर में भै जैवै बदनाम
‘सत्या’ गछबे नै करैं, नै सपड़ौ जों काम ।

धरम-करम केॅ नै कहोॅ ‘सत्या’ तोहें गोल
तोरो बनथौं एक दिन बाँसोॅ के फगदोल ।