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सन्तरा / नज़ीर अकबराबादी

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क्या क्या हर एक दरख़्त पे आया है संतरा।
फल ज़ोर ही मजे़ का कहाया है संतरा।
नारंगी और अनार कब अच्छे लगें उसे।
जिस रस भरी के दिल में समाया है संतरा।
छाती पे हाथ रखके कहा मैंने उससे जान।
मुद्दत में मेरे हाथ यह आया है संतरा।
गर तुम बुरा न मानो तो एक बात मैं कहूं।
यह तो किसी का तुमने चुराया है संतरा।
तुम तोड़ती थीं, आन पड़ा इसमें बागबां।
अंगिया में उसके डर से छुपाया है संतरा।
यह सुनके उसने हंस दिया और यूं कहा मुझे।
अब हमने इस तरह से यह पाया है संतरा।
एक बाग़ हुस्न का हैं जवानी है उसका नाम।
वां से हमारे हाथ यह आया है संतरा।
जोबन के बाग़वान ने, उठती बहार से।
ताज़ा अभी यह हमको भिजाया है संतरा।
कूल्हे ही लग रहा है हमारे तमाम उम्र।
जिसको कभी यह हमने दिखाया है संतरा।
जब तो नज़ीर मैं ने यह हंस कर कहा उसे।
मेवा खु़दा ने खू़ब बनाया है संतरा॥

शब्दार्थ
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