भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबक पारा सिखलाता है / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
Kavita Kosh से
न टूटे हम जड़ों से यूँ
कि फिर से
जुड़ नहीं पाएँ
अहम् का भाव अनुचित है
जतन जब सिद्ध से हो तो
नुचेंगे पंख चिड़िया के
चुनौती गिद्ध से हो ता
न मौसम से करे शिकवा
अगर हम
उड़ नहीं पाएँ
सबक पारा सिखाता है
बिखर के फिर सिमटने का
समय खुद हल बताता है
समस्य से निपटने का
न जड़ता ओढ़ले
इतनी कही भी
मड़ नहीं पाएँ