भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबसे कह दो / प्रज्ञा रावत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबसे कह दो कि
वो आज कहीं नहीं जाएगी
गुनगुनी धूप में बैठकर
धीरे-धीरे बालों में तेल लगाएगी
आज वो बरसों से टलते रहे
प्रेम-पत्र एक-एक कर लिखेगी
और ज़ोर से झूलते
हुए आसमान छू आएगी
आज वो फूलों को अपने
हाथों से छूएगी
छत पर ठण्डे बिस्तर में लेटकर
तारों को चलते हुए देखेगी
और धीमे-धीमे आकाश में चित्र बनाएगी
आज वो आँख बन्द कर
अपने कण्ठ से
सारी धरती को तर कर देगी।