भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभी से मैंने विदा ले ली / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सभी से मैं ने विदा ले ली:
घर से,
नदी के हरे कूल से,
इठलाती पगडंडी से
पीले वसंत के फूलों से
पुल के नीचे खेलती
डाल की छायाओं के जाल से।

सब से मैं ने विदा ले ली:
एक उसी के सामने
मुँह खोला भी, पर
बोल नहीं निकले।