भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समझकर पत्नी को अर्धान्ग / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भूपाली-ताल कहरवा)
 
समझकर पत्नी को अर्धान्ग। धर्म में रखता संतत संग॥
दीन, दासी, गुलाम-सी जान। न करता कभी भूल अपमान॥
निरन्तर सुहृद, मित्र निज मान। सदा करता विशुद्ध समान॥
‘पूर्ण करती त्रुटियों को नित्य। मिटाती दुविधा सभी अनित्य॥
हरण करती दुश्चिन्ता-क्लांति। चित को देती सुखकर शान्ति’॥
-देख यों पत्नी सद्‌‌गुण-रूप। हृदयका देता प्रेम अनूप॥
उसे गृहरानी कर स्वीकार। समझ उसका समान अधिकार॥
सलाह-समति ले सदा ललाम। चलाता घर-बाहर का काम॥
मधुर वाणी, सुमधुर व्यवहार। सदा करता आदर-सत्कार॥
शुद्ध सुख पहुँचाता अविराम। यही पति-धर्म अमल अभिराम॥