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समय / कविता वाचक्नवी

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समय
बरसात के पानी में मिल
मटिया गया
किसी गढ्ढे में,
दिन-रात
जम गए काँच पर
धुँध बनकर
उंगलियों ने नाम
लिखे होंगे बहुत
कभी रेत पर
काँच पर कभी।