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समाधि लेख / शक्ति चट्टोपाध्याय / मीता दास

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कुछ दिनों का सुख भोगा उसने, मनुष्य की ही तरह
हुई मृत्यु उसकी । कवि था वह, बेहद था कंगाल भी ।

जब वह मरा तब प्रकाशकों ने महोत्सव मनाया था,
क्योंकि, वह आदमी गया, बच गए, अब और परेशान नहीं करेगा
हर साँझ वह सजधज कर अब आकर नहीं कहेगा, पैसे दो...
न तो अब तोडफ़ोड़ ही होगी और न ही नष्ट होगा अभिलेखागार,
न ही कहेगा जल्द पैसे दे दो, नहीं तो आग लगा दूँगा इस घर को ...।

जबकि आग में ही जल गया वह आदमी जो था — कवि और कंगाल ।

मीता दास द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित