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समाया न होता / प्रेमलता त्रिपाठी

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गरल कंठ शिव के समाया न होता।
जगत देव-गुण गान गाया न होता।

कुटिलता हृदय की न मिटती हमारे,
अगर प्यार ने पथ सजाया न होता।

अहंकार के उठ रहें जो किलें हैं,
अगर नींव में वह दबाया न होता।

नयन कौन पथ पर बिछाकर निहारे,
सहज प्रीति माँ का बनाया न होता।

न मिलता सही मार्गदर्शन कभी भी,
सतत मार्ग गुरु ने दिखाया न होता।

बिखरती मनुजता कलुष भाव से यदि,
मधुर भाव हमनें जगाया न होता।

बहाते न यों नीर करुणा नयन हैं,
हृदय प्रेम हमनें बसाया न होता।