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समीरण के झोंके में / अज्ञेय

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समीरण के झोंके में फूल हँसते हैं, और खिल कर एकाएक कह देते हैं, 'प्रियतम, अब जाना मत!'
पर मेरी वाणी तुम्हारे आने पर भी स्तब्ध, मूढ़, नीरव ही रह जाती है।
समीरण फूलों को झुला कर कहता है, 'अब सो जाओ!' और जाते हुए उन के अलस ओठों पर चुम्बन अंकित कर जाता है।
तुम्हारे जाने पर मेरी इच्छा यों ही रह जाती है कि मुझ पर कहीं तुम्हारा चिह्न हो जिसे मैं मरते समय भी अभिमान और शान्तिपूर्वक धारण कर सकूँ!

1936