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समुद्री यात्राएँ / तरुण भटनागर

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1.
वे जो अज्ञात थे
उस अधूरी यात्रा के,
अनपेक्षित से पड़ाव पर,
की थी जिन्होंने,
फ़र्डीनेण्ड मैगेलन की हत्या,
साशय,
फिर भी जो नहीं इतिहास में,
साशय,
क्योंकी ख़त्म माने गये उनके पाप,
साशय
बताया गया उन्हें आदिम आदिवासी
हिंद महासागर के अज्ञात द्वीपों के
साशय
दुनिया को इस आश्वस्ति पर,
कि वे सचमुच नहीं जानते थे,
कि मैगेलन,
तो निकला था धरती की एक पूरी,
एक पूरी परिक्रमा कर लेने को,
समुद्र-समुद्र,
वे क्योंकर जानते,
यूँ जान लेना,
नहीं थी उनकी फितरत
कि वे जानते उसको
दुनिया को प्रथम
नयी ज़मीन के उस ग़लत दावेदार को
उसको जो था हेय, उद्दण्ड,
क्यों जानते
क्यों मानते
वे आतुर थे
साशय
कि ख़त्म कर दें उसे
घोप दें उसकी छाती में तलवार
आश्वस्त हो लें
कि वह मर गया
नहीं जानते थे सचमुच वे,
नहीं जानते थे,
जाहिल कहलाने का मतलब,
बेदखल होने इतिहास के शब्दों से?
नहीं था कोई भविष्यवक्ता तब,
जो बताता,
हिन्द महासागर के द्वीपों में रहने वाले,
उन आदिम लोगों को,
कि बरसों बाद,
फिर से,
इस जगह पर,
बार-बार,
मैगेलन क्यों आता है?
क्यों कहा जाता है,
कि है यह महान काम,
इस तरह पार कर लेना पूरी धरती,
समुद्र-समुद्र?
क्यों आकर,
वह टिकाता है,
अपना जहाज़ इन तटों पर?
क्यों दिखाता है
वे अजूबी चीज़ें,
जो वह लादकर लाया है अपने जहाज़ पर?
क्या कभी ग़ौर किया,
जहाज़़ से उतर कर,
वह सबको देखकर,
कैसा मुस्कुराता और बाहें फैलाता चला आता है?
हर बार,
लौटते समय,
वह क्यों कहता है,
कि वह आयेगा फिर से,
कि हमारा प्यार उसे खींच ही लायेगा?
तब कहाँ था कोई,
न सिर्फ़ कोई भविष्यवक्ता,
बल्कि कोई कवि,
कोई दार्शनिक,
कोई क्रांतिकारी,
क्या सचमुच था तब,
फिर भी हुई अजीम हत्या जो मैगेलन की।
सैंकडों बरसों बाद भी,
वहाँ कोई नहीं,
कहीं कोई भी तो नहीं,
उन तामाम आदिम द्वीपों पर,
जहाँ है ऐतिहासिक वीरानी,
ऐतिहासिक अनुपलब्धता,
और जहाँ प्रतीक्षित है,
आज भी,
हर पल,
हर क्षण,
मैगेलन की हत्या
हो जाने को जाहिल
कहलाने को आदिम
होने को इतिहास से बेदखल
बनने अज्ञात
बेनाम।
 
2.
आज भी
ढूँढे जाने से,
जो बचा रह गया है हिन्दोस्तान,
जो दर्ज है,
कुछ इस तरह,
कि वहाँ अभी पहुँचा जाना है,
वही हिंदोस्तान,
जिस पर दावा है
कि जहाँ अब तक कोई पहुँचा नहीं,
कहते हैं,
उसी हिन्दोस्तान को,
वहाँ,
वहीं,
फिर से ढूँढने,
फिर से पहुँच रहा है वास्को-डि-गामा
इतिहास नहीं है,
वास्को-डि-गामा का आना,
बल्कि उसका आना हो रहा है,
हर पल,
हर पक्ष
महासागरों की लम्बी यात्राओं के बाद,
बरसों सालों के यात्रा वर्षों के बाद,
वह आ रहा है
वहीं
वहीं पहुँचकर,
एक बेहद चिर-परिचित ज़मीन को,
उनके घर, चूल्हों, चेहरों को,
उसने हाल ही तो बताया है,
कि यह है
दुनिया का पहला,
सबसे पहला हिन्दोस्तान।
कालीकट के तट पर,
पहुँचकर,
जो,
उसका फिर से पहुँचना ही है,
फिर-फिर पहुँचना,
अतीत में पहुँचने को मिटाकर
भुलाकर कि आया था पहले भी
खत्म कर इतिहास का हर शब्द
घोषित कर
कि यही है
यही है
पहली
सबसे पहली पहुँच
क्योंकी पढा था,
स्कूली किताबों में,
और याद कर लिया था,
सिर्फ और सिर्फ़ मास्टर के भय से,
तब कहाँ पता था,
कि वह तो आता रहता है,
आश्वस्ति से लबरेज़,
करता है एलान,
कि,
आज भी,
यह पहला हिन्दोस्तान,
यह नवोदित हिन्दोस्तान,
जिसे खोजा है उसने,
अभी ब्ल्किुल अभी,
कितना तो गँवार, गरीब, जाहिल, भूखा और पिछड़ा है,
दुनिया के बेहद परिचित मंचो से,
वह बार-बार उद्घोष कर रहा है,
कि देखो-देखो,
यह जो ढूँढ़ा गया है हिन्दोस्तान,
दुनिया का पहला हिंदोस्तान,
दुनिया को पहली बार जो हिंदोस्तान,
यह कितना तो करतबबाज़ और दयनीय है।
समय के साथ,
पसर गई है एक तरह की सुगमता,
आसान हैं यात्रायें,
आरामदेह यात्रायें,
और इस तरह,
पार ही कर लेना हज़ारों मील लम्बा समुद्र,
और फिर,
बगीचों, कनीज़ों और मदिरा में डूबते-उतराते,
अलमस्त,
मद में डूबे,
किसी महान शहंशाह के सामने,
सिज़दा कर बन जाना सर टॉमस रो,
समझाना पूरी मुग़लिया सल्तनत को,
व्यापार और वाणिज्य।
अटलाण्टिक के पार,
अब कहाँ बचा है कोई वेस्ट-इण्डीज़,
अ-खोजा, तिक्त और मगन,
कहाँ अब कोई हवाई द्वीप,
बेदावा, बेफिकर और अलमस्त,
या कोई अण्डमान या बाली ही,
अपने जंगलों, सुख और प्यार के किसी दंभ में,
या कोई उत्तमाशा,
जो बहुत चुप था,
यह जानकर भी कि वहीं से बनी है,
दुनिया की रहगुजर,
कोई तस्मानिया,
कोई मेडागास्कर,
जो आज भी वहीं हो शायद,
कतरा-कतरा,
जो कभी वह पूरी शिद्दत से हो जाता था,
वहाँ पहुँच रहा है कोलम्बस,
बार-बार,
शताब्दियों से,
सांता मारिया में सवार होकर,
थामे कुतुबनुमा और टेलिस्कोप,
रेतघड़ी से नापता समय,
उतारता और चढाता अपना चश्मा,
ताकता रात के आकाश के तारों की स्थिती,
और चढ़ाता, उतराता,
जहाज के विशाल पालों को,
हवा के साथ,
हवा की दिशा में,
जो बहा ले जा सकते हैं,
पूरी सृष्टि को,
विशाल समुद्रों पर।
देखो-देखो,
वह बता रहा है पूरी दुनिया को,
टी.वी. पर, कम्प्यूटर और मोबाइल पर,
कि अटलाण्टिक के पार,
इस आदिम और प्रगैतिहासिक,
रैड इण्डियन आदिवासियों की ज़मीन पर,
कितनी तो अकूत सम्पदा है,
जंगल हैं हरे-भरे,
खनिजों से अटी पड़ी है धरती,
हैं असंख्य जंगली जानवर,
कि उसने इस जगह का,
किया है नामकरण,
कि यह जगह,
अब फिर से,
वेस्ट इण्डिज कहलायेगी।
फिर से ढूँढी जा रही,
हर उस दुनिया को,
जो नहीं बनी थी,
उनके ढूँढे जाने को,
या सिर्फ़ ढूँढे जाने को,
या सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके लिए ढूँढे जाने को
या सिर्फ़ ख़त्म कर सबकुछ
सिर्फ उनके लिए
फिर से बनाये जाने को
उसी
उसी दुनिया को,
लिखने,
कितने कल्हण, हरिषेण और बर्नी आतुर हैं,
उसे,
उसी को,
उसी तरह,
फिर से दर्ज करने,
बनाने तवारीख,
लिखने प्रशस्तियाँ।

3.
समुद्री यात्री,
निकोलाई मनूची है,
वह शामिल है,
दारा शिकोह की सेना में,
और हार के बाद,
बार-बार की हार के बाद,
थक चुका है
बढती उम्र, हार और नुक़सान से आजीज आकर
वह बदल लेता है खेमा,
शामिल हो जाता है,
औरंगज़ेब और उसके वारिसों की गिनती में।
ऐसा नहीं है,
कि वह भूल ही गया हो सबकुछ,
कभी वह,
फिर से पढ़ लेता है,
दारा शिकोह की कविताएँ,
पलटता है,
अधीर, कौतुक और उदास,
सक़ीनत-उल-औलिया और मजमा-उल-बहरीन के पन्ने,
किसी बेहद एकांत में,
भरे मन से,
या बहुत से
आतुर और आत्मीय लोगों से
करते गुफ्तगू
वह कह ही देता है,
कि वह था उदार, प्रेमी,
सूफी और दीवाना सा,
कि वह था सच्चा कवि,
सो उसका हारना तय था,
उत्तेजित हो
सूखे, भावुक और तिक्त नेत्रों से
वह कह ही देता है
कि वह था सनकी,
देखता था हिन्दू, मुसलमान को,
एक ही नज़र से,
भला वह न हारता तो कौन हारता?
देखो उसने लिख ही दिया,
स्टीरिया-डो-मोगोर में,
कि तय थी वह हार
समुद्री यात्री जानना चाहता है,
कि यूँ एकांत में पढना कविता,
और लिख देना
बेहद शिद्दत से,
स्टीरिया-डो-मोगोर मंे,
पन्ने दर पन्ने,
कि था वह सच्चा
दीवाना, प्रेमी और कवि
उदार और आक्रोश से भरा
क्या यही है,
जिससे लोग भूल जाते हैं,
कि यह उसने लिखा था,
खेमा बदल लेने के बाद?
बहुत कम हैं,
जिन्हें याद रहता है,
जो देखते हैं,
इतिहास की किताबों के आर पार,
उस प्रेम
और आत्मीयता के परे
परे उा दुःख और संताप से
जिसके घटाटोप में
खुद को छिपाये
वह समुद्री यात्री
कितना तो आश्वस्त।

4.
फ़ाहîान और इत्सिंग की तरह,
जो आये,
ढूँढ़ने कोई किताब या पाण्डुलिपि,
अन्ततः,
और वे जिन्होंने की लम्बी समुद्री यात्राएँ,
ढूँढ़ लाने कोई रंग या कोई नई धुन,
झाड़ पोंछकर,
फिर से पढ़ने की ज़रूरत के साथ,
उठाने,
इतिहास के ख़ाक में पड़ी कोई कविता,
आज भी जो बिना थके,
पार करते रहते हैं समुद्र,
जो ह्वेनसांग होना चाहते थे,
बटोर ले जाना चाहते थे,
इस ज़मीन की किताबें उस ज़मीन को,
इसकी स्मृतियाँ उसको,
बुद्ध की बातें,
नास्तिकता, अनात्मावाद और पाखण्ड का खण्डन-मण्डन,
ले जाना चाहते थे,
एक नई ज़मीन तक,
बेहद कठिन यात्रा के अन्तिम पड़ाव पर,
टट्टुओं पर लादे अनगिनत किताबें
नये अर्थ ढोती पाण्डुलिपियाँ
पार करने को सिन्धु नदी,
वे हुए अज्ञात हमलावरों के शिकार,
और इस तरह,
अधूरी यात्रा में ही,
लूट ली गईं वे किताबें।
कितनी बार तो लौटता है,
ह्वेनसांग,
अनजान ज़मीन पर,
खाली हाथ,
कितने खोखले लगते हैं उसके दावे,
हर सच्चेपन के बाद भी,
कि वह आया है,
बुद्ध की भूमि से,
सचमुच।

5.
जहाज़ों पर सवार,
वह पार करता है सातों समुद्र,
पर अब,
वह समुद्र यात्री नहीं कहलाता है,
लम्बी ऐतिहासिक यात्राओं के बाद,
वह अब कुछ और है,
किसी और नाम के साथ।
किसी एयरक्राफ़्ट कैरियर पर तैनात,
डि-एगो-गाषिया से आता है हिन्द महासागर के रास्ते,
वह बस निगरानी रखता है,
भारतीय और अरब प्रायद्वीपों के,
शहंशाहों पर,
अब,
बस इतने से ही काम चल जाता है।