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सरसों का खेत मेरा मन / सुनीता जैन

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सरसों का खेत मेरा मन
लहके साँस में सुगंध
तेरे साथ से सुखी
मेरा आखिरी बसंत,
प्रिय पहली तरंग
तेरे प्राण से उठी जो
मेरे अंग में रची वह
जैसे मेहँदी का रंग,
मेहँदीका रंग, बन्ने
लाल-सी पतंग
जैसे बादलों पे छाए
मैंने धोया बहुत
इसको पोंछा बहुत
बैरी रचता ही जाए