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सर्दियों के इन शानदार दिनों में / निकअलाय ज़बअलोत्स्की / अनिल जनविजय

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अभी गाँव में धूप नहीं उगी थी सुनहली
अभी भी बग़ीचों में दसियों साए फैले थे
अभी भी चान्दनी खिली हुई थी रुपहली
पर पेड़-पौधे अब ठण्ड में खड़े छैले थे

अभी कल तक दिन पारदर्शी और नीले थे
शानदार जाड़ा थोड़ा जल्दी उतर आया था
रात को बर्फ़ गिरी थी, पत्ते बर्फ़ से गीले थे
और रात ही में हवा को मार गया पाला था

कुछ सोचते हुए मैं खिड़की से झाँक रहा था
दिखाई दे रही थीं छतें पड़ोसी मकानों की
क्षितिज पर पीली लौ में सूरज काँख रहा था
काहिल, सुस्त, जिसे कमी नहीं बहानों की

बर्फ़ लदे भुर्ज वृक्ष लाईन में खड़े हुए थे
साफ़ कर रहे थे हिम पटसन की बुहारी से
पारदर्शी हिम से बग़ीचे सारे भरे हुए थे
हिमतूफ़ान लाया था जिसे पूरी ऐतबारी से

मेरा बूढ़ा कुत्ता खड़ा हुआ था वहाँ सावधान
श्वेत मोती-माला सी बर्फ़ झिलमिला रही थी
पूरी तरह इस तरफ़ लगा हुआ था मेरा ध्यान
ठण्डी सुबह में आत्मा मेरी खिलखिला रही थी

सर्दियों के इन प्रशस्त और शानदार दिनों में
बर्फ़ से जमे हुए पेड़-पौधों के साए में गहरे
हमें मुक्त, स्वतन्त्र, आज़ाद रहना है पूरी तरह
प्रेरणा व जीवन शक्ति पर चाहे लगे हुए हों पहरे

1946
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
         НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
                       * * *
Еще заря не встала над селом,
Еще лежат в саду десятки теней,
Еще блистает лунным серебром
Замерзший мир деревьев и растений.

Какая ранняя и звонкая зима!
Еще вчера был день прозрачно-синий,
Но за ночь ветер вдруг сошел с ума,
И выпал снег, и лег на листья иней.

И я смотрю, задумавшись, в окно.
Над крышами соседнего квартала,
Прозрачным пламенем своим окружено,
Восходит солнце медленно и вяло.

Седых берез волшебные ряды
Метут снега безжизненной куделью.
В кристалл холодный убраны сады,
Внезапно занесенные метелью.

Мой старый пес стоит, насторожась,
А снег уже блистает перламутром,
И все яснее чувствуется связь
Души моей с холодным этим утром.

Так на заре просторных зимних дней
Под сенью замерзающих растений
Нам предстают свободней и полней
Живые силы наших вдохновений.

1946