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साइकिल / राग तेलंग

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साइकिल बनाने वाले का
शुक्रिया अदा करो कि
उसने अपना बोझ ख़ुद उठाने की
यह एक मशीन बनाई
उनके लिए
जो भले न चल पाए
ज़माने की रफ़्तार के साथ
पर गति में तो बने रहे
रफ़्ता-रफ़्ता ही सही
किसी भी तरह उबड़-खाबड़ रास्तों पर
साइकिल चलाते वक़्त
सबसे कम खिलाफ़ होती हवा
या कहो कान में बुदबुदाती
बढ़े चलो-बढ़े चलो, चरैवेति-चरैवेति
ठंड-बारिश के दिनों में लगता कि
मौसम हमारे लिए ही बनाए गए हैं और
तपती धूप में मालूम पड़ती
पसीने की कीमत
साइकिल ने रखा
सेहतमंद उम्र भर
भले आज देखा जाता हो
साइकिल के रखवालों को
उपेक्षित और
सबसे निचले पायदान पर खड़े नागरिक के रूप में
दर्ज़ करो काग़जा़त में कि
साइकिल वालों की देशभक्ति
संदेह से परे लिखने में हिचकिचाए
उनके अफ़सरान
साइकिल का संगीत सुनो
और आलाप, विलंबित, मध्य और द्रुत लय के मजे लो
जो बिना इस साज़ को आजमाए मुमकिन ही नहीं
सर्कस में
साइकिल के करतब दिखाने वाला वो योगी
वह बेरोज़गार
जिसकी बदौलत
चौरास्ते के कोने में लगता था मजमा
लगातार सात दिन-रात बिना रूके
साइकिल चलाने के नाम पर
धीमी गति की साइकिल रेस करने के
बचपन के वे दिन
सब जाते रहे
अब लगातार तेज़ी से उड़ती जा रही है
पेट्रोल के वाष्प कुओं में से
तेल के दामों में नित लगती है आग और
मुल्क और धँसता है
महंगाई के सुरसा जैसे मुँह में और
उतनी ही तो छोटी होती जाती है हमारी रोटी
इस जगमग रात की तमाम रोशनियाँ नकली हैं
सपने से जागेंगे हम एक दिन
जब सुबह-सुबह बजेगी कानों में
मद्धिम स्वर में
घंटी साइकिल की
ट्रिन- ट्रिन... ट्रिन- ट्रिन... ट्रिन- ट्रिन ।