भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सागर मुद्रा - 5 / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 कुहरा उमड़ आया
हम उस में खो गये
सागर अनदेखा

गरजता रहा।
फिर हम उमड़े
सागर अनसुना
बरजता रहा,

कुहरा हम में खो गया।
सब कुछ हम में खो गया,
हम भी
हम में खो गये।

सागर कुहरा हम
कुहरा सागर
शं...

मांटैरे (कैलिफ़ोर्निया), मई, 1969