भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ न दोगी ? / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जब जगती में कंटक-पथ पर
प्रतिक्षण-प्रतिपल चलना होगा,
स्नेह न होगा जीवन में जब ;
फिर भी तिल-तिल जलना होगा,
घोर निराशा की बदली में
बंदी बनकर पलना होगा,
जीवन की मूक पराजय में
घुट-घुट कर जब घुलना होगा,
क्या उस धुँधले क्षण में तुम
भी बोलो, मेरा साथ न दोगी ?

जब नभ में आँधी-पानी के
आएंगे तूफ़ान भयंकर,
महाप्रलय का गर्जन लेकर
डोल उठेगा पागल सागर,
विचलित होंगे सभी चराचर,
हिल जाएंगे जल-थल-अम्बर,
कोलाहल में खो जाएंगे
मेरे प्राणों के सारे स्वर,
जीवन और मरण की सीमा
पर, क्या बढ़कर हाथ न दोगी ?
1949