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साधना के सिंधु में / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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गीत के तुमको
मिलेंगे ठॉंव
साधना के सिंधु में गोते लगाओ तो

कलरवों में लय घुली है
गीत, उड़ती तितलियों में
पवन, बदली, चॉंद, सूरज
तार सप्तक बिजलियों में
जग उठेंगे गोपियों के गाँव
बाँसुरी कान्हा सरीखी
तुम बजाओ तो

जड़, तना, फल, फूल, पत्तों
सहित इनको ढूँढलाओ
गंध सौंधी, नदी पनघट-
खेत की इनमें मिलाओ
चल पड़ेंगे अक्षरों के बीच
हाथ में तुम गीत का
परचम उठाओ तो

खनक, रूनझुन, गुनगुनाहट
भ्रमर के अनुराग में हैं
गीत, मौसम, कूल, पर्वत
नदी झरने बाग में हैं
गीत ही देगा सुनहरी छाँव
होंठ पर तुम गीत की
सरगम बजाओ तो

गीत रमते शंख, वीणा
बाँसुरी, शहनाइयों में
गीत अन्तर्चेतना की
जा बसे गहराइयों में
हों विफल हमलावरों के दॉंव
गीत को तुम शीश पर
अपने बिठाओ तो