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सामने परबत भी हैं, कुछ लोग कहते आए थे / निश्तर ख़ानक़ाही

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सामने परबत भी हैं, कुछ लोग कहते आए थे
हम तो बस हमवार मैदानों में बहते आए थे

अब की बरखा कर गई मिस्सार तो हैरत ही क्या
यो दरो-दीवार तो बरसों से ढहते आए थे

आख़िर-आख़िर अब वही मेआर* ठहरा जीस्त का
लोग जिस अंदाज़ को मायूब कहते आए थे

कौन जाने किसलिए चूल्हे का ईंधन बन गए
ये शजर*तो मौसमों की मार सहते आए थे

अब के क्या अदबार* आया, ख़्वाब तक गहना गए
चाँद, सूरज तो हमेशा से ही गहते आए थे

1-स्तर

2-दूषित

3-अशुद्ध

4-संकट, विपदा