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सारंग से बातें - 2 / कमल जीत चौधरी

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मैं रात में छत पर सूखे कपड़े लेने जाता हूँ
ढाई साल का मेरा बेटा बाँहें पसारकर कहता है —
मैं भी जाऊँगा ।

मैं टालते हुए कहता हूँ —
ऊपर अँधेरा है बेटा ।

वह कहता है —
पाप्पी जी, मैं धेरे* में आपको बचा लूँगा
मैं सफ़ेद बुड्डी को ठा मार दूँगा ।

मैं हँसकर उसे गले लगा लेता हूँ
मैं पूछता हूँ —
आप मुझे कित्ता प्यार करते हो,
ज़ादा
मैं आपका कौन हूँ ?
 
आप मेरे टक पाप्पी हो ।
....

आप मुझे टक पाप्पी क्यों कहते हो ?

क्योंकि
टक टक स्वाद लगता है ...

शब्दार्थ
धेरे — अँधेरे