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सारे नुक़ूश जिस पे तिरे आशियाँ के हैं / दिल अय्यूबी

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सारे नुक़ूश जिस पे तिरे आशियाँ के हैं
दैर-ओ-हरम ग़ुबार उसी कारवाँ के हैं

वादी-ए-कोहसार-ओ-बयाबाँ-ओ-गुलिस्ताँ
अज्ज़ा-ए-रंग-रंग मिरी दास्ताँ के हैं

हर चंद कू-ए-यार बहुत फ़ासले पे है
बदले हुए अभी से मिज़ाज़ आसमाँ के हैं

हमदम हँसी उड़ा न दिल-ए-दाग़-दाग़ की
तोहफ़े दिए हुए ये किसी मेहरबाँ के हैं

हों ज़ेहन के दरीचे अगर वा तो देख ले
परवरदा सब यक़ीं मिरे हुस्न-ए-गुमाँ के हैं

क्या दुश्मनों की कीजिए ऐ ‘दिल’ शिकायतें
मारे हुए तो हम करम-ए-दोस्ताँ के हैं