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सिपै से शहीद तक की जात्रा / बलबीर राणा 'अडिग'

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चखुलिक प्रीत, पोथुलों तें दुलारक क्षोभ नि रो कब्बी
अपणी ख्याति, मान-सम्मान, वैभव कु मोह नि रो कब्बी
चैल-पैल जीवन मा क्या होंदी कब्बी नि पच्छयाणी मिन
बस सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिल।

गौं ख़्वालों की क्या बात, भ्वोळ कबिता बी बिसरी जाली
लाम मा लम्डणा चार दिन बाद, फिर कैतें याद आली
इतियास मा अमर रावूं इनि मृत्यु इच्छा नि छ म्येरी
संगसार छोड़ी जाण पर बिसरण मा कख छ दयेरी।

दुन्या बेसक बिसरी जावो सेवा-धर्म निभायी मिल
जै माटी यु देह च वे माटी मा मिली-मिटी जाणी मिन
आखिर सांस तलक भारत विजै रथ हकाणो धरम रो मेरु
बिकट धार-गाड़ ह्यूं कंठों मा अडिग रोंण कर्म रो मेरु।

हर फजल एक लाल किरण भारत क्षितिज से आली
गोधूली मा सेवा सौंळी लगे तिमिर दगड़ रात भर जगेली
दयबतोंक मनोणा बाद भी वे स्वर्ग से मैं भाजी जोला
कै रात चट उल्का बणि फेर ये धरती पर ऐ रोला।

तुम नि पच्छ्यांण सकला पर भौंरु बणि यखी रिंटणु रौलु
कुखड़ी बणि बांग दयलू सुबेर, दिन भर छवप्पा पड़ी रैलु
एक बीर पर मातृ भूमि कु कर्ज जन्मजमान्तर कु होन्दू
कै भी योनि मा यख रैकी फर्ज अपणु निभोणे रैन्दू।

भ्वोळ ज्वनो का धमन्यूं मा तातू वेग बणि तागत दयूलू
वों का खुट्टा थोर माटा मा लुकीs जय हिन्द ब्वललू
अगला युग का वा कपिध्वज जै दिन तख परलय मचाला
मि गर्जलू ध्वज का टुकू बटिन वा बैरी मुंड धड़काला।

द्वी फूल शहीदों नो नित अपरपण से हजारों फूल ख़िलला यख
मैं जन लाखों बीर वतन का खातिर सदानी खड़ ह्वला यख
तिलक मां माटी पर चढ़ण अर चढाणु इत्गा सी माणी मिन
बस सेनापति का एक इशारा पर मिटण-मिटाणु जाणी मिन।