भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रूप घनाक्षरी
(शांतिमय वन-वर्णन)

सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद, परिमल लीन्हैं अलि-कुल छबि छहरत ।
कामबन, नंदन की उपमा न देत बनैं, देखि कैं बिभव जाकौ सुर-तरु हहरत ॥
त्यागि भय-भाव चहूँ घूँमत अनंद भरे, बिपिन-बिहारिन पैं सुख-साज लहरत ।
कोकिल, चकोर, मोर करत चहूँघाँ सोर, केसरी-किसोर बन चारौं ओर बिहरत ॥१०॥