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सुनते हैं फिर छुप छुप उनके घर में आते जाते हो / इब्ने इंशा

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सुनते हैं फिर छुप छुप उनके घर में आते जाते हो
इंशा साहब नाहक जी को वहशत में उलझाते हो

दिल की बात छुपानी मुश्किल, लेकिन खूब छुपाते हो
बन में दाना, शहर के अन्दर दीवाने कहलाते हो

बेकल बेकल रहते हो, पर महफ़िल के आदाब के साथ
आँख चुरा कर देख भी लेते हो, भोले भी बन जाते हो

प्रीत में ऐसे लाख जतन हैं, लेकिन एक दिन सब नाकाम
आप जहां में रुसवा होगे, वज़ह हमें फरमाते हो

हम से नाम जुनून का कायम, हम से दश्त की आबादी
हम से दर्द का शिकवा करते, हम को ज़ख्म दिखाते हो?