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सुनना / प्रकाश

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सुनता था
क्योंकि सुनाई देता था
पहले सुनने से ना-ना करता था
छुपता-भागता-फिरता था
भागकर जहाँ-जहाँ पहुँचता था
गूँज पहले ही वहाँ
पहुँच चुकी होती थी

एक भिखारी रोता-फिरता था
उसके रोने में सुनाई देता था
और गजब कि अनंत अनगिन भिखारियों की भीड़ थी
एक व्यापारी था
उसकी बात में सुनाई देता था
कितनी तो बातें करता था!
हर बात में एक-एक व्यापारी था
इस तरह अनंत अनगिन व्यापारियों की भीड़ थी
एक बहुत सुखी आदमी
ठहाके लगाता झूमता था
उसके सुख में सुनाई देता था
उसके अनंत अनगिन सुख थे
अनंत और अनगिन सुख में
अनंत और अनगिन सुखी थे
उस अनंत और अनगिन में
सुनाई देता था

मैं भागता पहुँचा था एक आदिम गुफ़ा में
वहाँ थोड़ी रोशनी और
ज़्यादा अंधेरा था
रोशनी और अंधेरे से घुलकर
लहर उठती थी
लहर में अनगिन चित्र थे
उनके नाम थे जो पता नहीं
कब किस काल में
वहाँ रह चुके थे
वहाँ उनकी थोड़ी-सी सुगंध
बची रह गई थी
मैं बचने के लिए भागते-फिरते
नदी, खेत-खलिहान, मैदान, रेगिस्तान
सब लाँघ चुका था

अब मैं एक पहाड़ के शिखर पर था
ऊपर घूमता हुआ सारा आसमान था
आसमान था या रोशनी थी!
मेरी आँखें चुंधिया कर मुंद चुकी थीं
पैर भागने से इंकार कर चुके थे
तेज़ हवा चलती थी
मैं खड़ा, उड़ता था वस्त्र
दोनों हाथ उठे थे आसमान की ओर
अनंत-अनंत से गूँज उठती थी
अब सब-कुछ सिर्फ़
सुनाई देता था

मैं सुनने को स्वीकार कर चुका था!