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सुना है गांधी नहीं रहे / चित्रा पंवार

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जिस पर नित्य बुना करते थे
प्यारे बापू
अपने सपनों का भारत
आज सुना वह चरखा टूट गया
उगते सूरज की लालिमा
एक बूढ़े सन्यासी की
छाती से बहता लहू देख
लज्जा से सिमट गई
सुना है
उगने से पहले ही
लोकतंत्र का सूरज डूब गया
गुथी हुई थी जिसमें
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
छोटे, बड़े सब फूलों की माला
हिंसा के निर्मम हाथों ने
वह सूत का धागा तोड़ दिया
जिस बेटे की लाठी थामे
हिम्मत और साहस से
सीना ताने खड़ा हुआ था
अपना बूढ़ा भारत
सुना है नफरत की गोली ने
उसका सीना चीर दिया
पुच्छल तारों की
साजिश के हाथों
ध्रुव तारा टूट गया
सुना है अहिंसा पर हिंसा
की फतह हुई है
सुना है भारत के भाग्य की
छय हुई है
सुना है वीरों के देश में
कायरता की जय हुई है
सुना है भारत माँ रोती है
अपने आंचल पर लगे
लहू की छीटों को
आंसू से धोती है
कोई कहे यह बात है झूठी
हाय!
कोई कहे, कोई तो कहे
सुना है गांधी नहीं रहे