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सुन ले तू ज़माने! मैं वो किरदार नहीं हूँ / प्रमोद शर्मा 'असर'

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सुन ले तू ज़माने! मैं वो किरदार नहीं हूँ,
बिक जाए जो सिक्कों में वो फ़नकार नहीं हूँ।

वो शय हो कोई जिस पे मेरा हक़ नहीं बनता,
मैं ऐसी किसी शय का तलबगार नहीं हूँ ।

हर हाल में ज़ालिम ही मेरी ज़द में रहेगा,
बेकस पे उठे जो मैं वो तलवार नहीं हूँ।

दौलत के परस्तारो हिक़ारत से न देखो,
मुफ़्लिस हूँ मगर कोई गुनहगार नहीं हूँ ।

उसने मुझे बख़्शा है क़नाअत का ख़ज़ाना,
दौलत का इसी से मैं परस्तार नहीं हूँ ।

तूफ़ां में सफ़ीना हो या गिर्दाब मुक़ाबिल,
मल्‍लाह को दूँ छोड़ वो पतवार नहीं हूँ।

अपनों से जुदा हो के 'असर' कैसे रहूँ मैं,
बाँटे जो किसी घर को वो दीवार नहीं हूँ ।