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सुपती खेलैतै तोहे ननदो छिकी, कि तोहे मोरी ननदो नै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रसव-वेदना आरंभ होने पर जच्चा अपनी ननद के द्वारा अपने पति को सूचना भेजती है। पति दौड़ता हुआ अपनी पत्नी का कुशल-समाचार पूछने आता है। पत्नी अपनी वेदना का उल्लेख उससे करती है। वह डगरिन को बुलाने जाता है। डगरिन मान करती हुई कहती है-‘जिस पालकी पर रानी चढ़कर आई थी, उसी पालकी पर चढ़कर मैं जाऊँगी।’ डगरिन पालकी पर चढ़कर आती है और पुत्र की उत्पत्ति होती है। पुत्र-प्राप्ति की खुशी में पति तो सर्वस्व लुटाना चाहता है, लेकिन पत्नी का ध्यान बच्चे के भविष्य पर भी है। वह दान करने से मना नहीं करती, लेकिन हल्का-सा संकेत देकर कुछ मुट्ठा कसने का निर्देश कर देती है।

सुपती खेलैतेॅ तोहें ननदो छिकी, कि तोहें मोरी ननदो न हे।
ननदो हे, भैयाजी के आनहो रे<ref>बुलाकर ले आओ</ref> बोलाइ, दरद मोरा ओहे<ref>वही</ref> हरथिन<ref>हरेंगे</ref> हे॥1॥
जुअवा खेलैतेॅ मोरा भैया, कि तोहिं मोरा भैया न हो।
भैया, तोरि धनि दरदे बेयाकुल, तोहरा के चाहै न हे॥2॥
जुअवा नेरवलन<ref>फैला दिया; बिखेर दिया</ref> भैया बेल तर, औरो बबुर तर हे।
भैया, झपसि<ref>लपककर</ref> पैसले मुनहर घर<ref>घर का भीतर भाग, यहाँ कुछ अंधेरा रहता है</ref>, कहु धनि कूसल हे॥3॥
डँरबा जे करै कसामसि, केसिया से धूरी लोटे हे।
राजा हे, धरती लागल असमान, कैसे कहब कूसल हे॥4॥
एतना बचन जबे सुनलन, सुनहूँ न पाएल हे।
राजा, चलि भेल अजोधा नगरिया, कहाँ बसै डगरिन हे॥5॥
नीचहिँ बैठल डगरिन, ऊपर चँवर डोलै हे।
राजा, नेने<ref>कमर</ref> आहो रानीवाला दोलिया<ref>लिये आओ</ref> ओहि रे चढ़ि जाएब हे।
राजा हे, तोहरो के भेलो होरिलबा, कि अजोधा लुटाबह हे॥7॥
सोरिया<ref>सूतिका गृह</ref> घर से बोलथिन रानी, आहे गरब सेॅ बोलथिन हे।
राजा राखी जोखी<ref>कुछ रखकर</ref> अजोधा लुटाएब, अपनों होरिलबा ल कुछ राखब हे॥8॥

शब्दार्थ
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