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सूद भी न मिला मूलधन खो गया / जनार्दन राय

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सूद भी न मिला मूलधन खो गया,
जिन्दगी की खुशी का गबन हो गया।

वाग मन के मनोरथ का था लग गया,
स्नेह का भी सरोवर वहाँ बन गया।
किन्तु आशा-कमल जब था खिलने लगा,
विघ्न के हिम गिरे ध्वस्त सब हो गया।

थी तमन्ना बड़ी गीत गुंजाने की,
शान्ति पा नीड़ में सुख से सो जाने की।
प्रीत जो न मिली, गीत बन न सका,
देखते-देखते क्या से क्या हो गया।

भावना थी पली, कामना थी जगी,
मन की आशा-लता लहलहाने लगी।
स्नेह-सुमनों की कलियाँ जब खिलने लगी,
जड़ अचानक कटी, घर स्वयं गिर गया।

जिन्दगी कह रही थी कहानी नयी,
थी पुरानी व्यथा कल्पना थी नयी।
साधना घट गयी, भावना मिट गयी,
धाम ऐसा विधाता यहाँ हो गया।

थी नदी पार माया बुलाती रही,
मन की काया सदा छटपटाती रही।
नाव बढ़ने लगी, लहरें चलती रही,
दूर उससे किनारा मगर हो गया।

नीव तो पड़ गयी पर महल न बना,
गम का बादल सघन से सघनतर बना।
भाग्य विगरा जो फिर से नहीं बन सका,
दीप जो ज्योति देता वही बुझ गया।

-चन्द्रसेन निवास, क्योटा।
11.8.1985 ई.