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सूनी दुपहरी में मैं / सारिका उबाले / सुनीता डागा

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गुज़रती है दूर से
एक मोटरसाइकिल
दाएँ से बाईं ओर
या बाएँ से दाईं ओर
दूर से ही सुनाई देती है
उसकी आवाज़ —
कुछ अस्पष्ट-सी…

सुनाई देती है
घर की घड़ी की टिकटिक —
स्पष्टता से ।

भौंकती रहती है
पड़ोस की कुतिया
कई किलोमीटर की दूरी से
आती हुई गन्ध से
या चुपचाप रास्ते से
गुज़रने वालों पर
यूँ ही बिलावजह ।

सारे काम निपटाकर
कोई तो
कपड़े धोने का
आख़िरी काम करते हुए
सुनाई देता
सिर्फ़ चूड़ियों का खनकना
और झाग में कपड़ों को
घिसने की गीली आवाज़

काफ़ी दूरी पर
रास्ते से गुज़रती
पुरानी साइकिल की चेन की
ज़ंग खाई चरमराहट
पड़ोस के घर में
स्त्रियों की आवाजाही
चहल-पहल !

कॉलोनी के
किसी घर के गेट के खुलने की खड़खड़ाहट
सागवान के सूखे पत्तों की सरसराहट ।

गोलेवाले की सीटी
और कबाड़ी की आवाज़…

शान्त घर में बैठी
सुनती हूँ मैं सब —
सूनी दुपहरी में ।

कल रात में
उससे पहले की रात्रि में
दो रातों से पहले की रातों में
और एक माह पूर्व आते
रात्रि के सपने का अर्थ ढूँढ़ती हुई
या फिर वर्तमान के चेहरे पर
बार-बार तुम ही क्यों आते रहते हो —
भूत बनकर…
भविष्य को बैचेन बनाने के लिए !

मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा