भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरजमुखी का सच / सीमा संगसार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ री सूरजमुखी,
ताकती है सूरज का मुँह
अंधेरों से घबराकर
सौंप देती है
अपना सर्वस्व
सूरज के हवाले?
एक सूरज के इशारे पर
कठपुतली-सी नाचती हुई
तुमने अपनी सारी महक खो दी है
तुम्हारा सारा वजूद
समा गया है
सूरज की किरणों में...

ओ री सूरजमुखी
कभी होश आये तो
आना चांदनी रात में
रातरानी बनकर
दीदार करना चाँद से
जब तेरे रूह में
समा जाए चाँदनी
यकीन मानो
छोड़ देगी गुलामी
 सूरज की...