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सोचना जरूर / सदानंद सुमन

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अगर मिले कभी वक्त
तो सोचना जरूर

सोचना
कि क्यों होता जा रहा पृथ्वी का रंग
बदरंग नित
कि कौन सोखता जा रहा है
उसका हरापन

सोचना
कि क्यों होने लगे हैं निष्काषित
आसमान से परिन्दे
कि क्यों उनकी जगह घेरने लगे है
बमवर्षक विध्वंसक युद्धपोतीयान

सोचना
कि क्यों घुलने लगा है
हवा में ऐसा जहर
कि मरती जा रही है धीरे-धीरे
आदमी के भीतर की संवेदना

मिले अगर वक्त कभी
तो सोचना जरूर