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स्त्री – दो / राकेश रेणु

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यह जो जल है विशाल जलराशि का अंश
इसी ने रचा जीवन
इसी ने रची सृष्टि ।

यह जो मिट्टी है, टुकड़ाभर है
ब्रह्माण्ड के अनेकानेक ग्रह-नक्षत्रों में
इसी के तृणांश हम ।

यह जो हवा है
हमें रचती बहती है
हमारे भीतर–बाहर प्रवाहित ।

ये जो बादल हैं
अकूत जलराशि लिए फिरते
अपने अँगोछे में
जल ने रचा इन्हें हमारे साथ-साथ
उन्होंने जल को
दोनों समवेत रचते हैं पृथ्वी-सृष्टि ।

ये वन, अग्नि, अकास-बतास
सबने रचा हमें
प्रेम का अजस्र स्रोत हैं ये
रचते सबको जो भी सम्पर्क में आया इनके ।

क्या पृथ्वी, जल,
अकास, बतास ने सीखा
सिरजना स्त्री से
याकि स्त्री ने सीखा इनसे ?

कौन आया पहले
पृथ्वी, जल, अकास, बतास
या कि स्त्री ?