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स्पर्श / माया मृग

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तुमने लौ को छुआ
और वह मणिक बन गई
बेशुमार मनके
तुम्हारी मुट्ठी में
सिमटते चले गये।
पता चला कि
दरअसल
लौ से-
तुम्हारे हाथ जल गये थे
और तुमने
जले पोर मुझसे छिपाने को
मुट्ठी बंद कर ली थी।

तुमने उस दिन
बहुत जोर से
एक पत्थर उछाला
आकाश की तरफ।
वह तुम्हारे स्पर्श की नियति थी
या उस पत्थर की,
वह हवा में ही
फूल बन गया
बहुत देर बाद
जब वह पत्थर नीचे गिरा
उस पर तुम्हारे खून के धब्बे थे !