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स्वागत-गान - 1 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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आज कैसा सुंदर दिन आया।
जिसकी सुंदरता की जन-मन-मुकुर में पड़ी छाया।
काशी धाम-समान दूसरा धर्म-पीठ न सुनाया;
कहाँ विलसती है, निशि-वासर विश्वनाथ की माया।
कौन विविध विद्या-विवेक का सिध्द पीठ कहलाया;
बुध्ददेव ने धर्म-चक्र रच कहाँ सिध्दि-फल पाया।
सुरसरि-पावन, सुरपुर-सम यह पुर क्यों गया सजाया;
क्यों महिमामय काशिराज को यहाँ गया पधाराया।
देश-देश से आज क्या वही विबुधों का दल आया;
गिरादेवि अंकम में जिसकी पली कीर्तिमय काया।
पलक-पाँवड़ा जन-जन ने स्वागत के लिए बिछाया;
पाकर ऐसे विबुध यह नगर फूला नहीं समाया।
उसने उनको चारु चाव का चंदन तिलक लगाया;
प्रेम-सहित आनंद-कुसुम का गजरा गूँथ पिन्हाया।
विद्या-बल से टले अविद्या, हो भव का मनभाया;
इस महान शिक्षा-सम्मेलन का हो सुयश सवाया।